Batuk Bhairav Hrudya Stotra is a divine hymn to obtain the blessings of Lord Batuk Bhairav. Regular practice of this Hrudya Stotra provides immense benefits. This divine heart-hymn destroys all sins and bestows all wealth, happiness, and accomplishments.
It is thought that reciting it will remove sins, bestow all sorts of prosperity, and bring fulfillment and success. The stotram highlights the deity's characteristics and the benefits of singing it, such as protection from fear and negative influences.
Batuk Bhairav Hrudya Stotra Meaning
श्री बटुक भैरव हृदय स्तोत्रम्!!
श्रीगणेशाय नमः। श्रीगुरवे नमः ॥
श्रीउमामहेश्वराभ्यां नमः। श्रीभैरवाय नमः ॥
पूर्वपीठिका
कैलाशशिखरासीनं देवदेवं जगद्गुरुम् ।
देवी पप्रच्छ सर्वज्ञं शङ्करं वरदं शिवम् ॥ १॥
poorvapeet'hikaa
kailaashashikharaaseenam' devadevam' jagadgurum .
devee paprachchha sarvajnyam' (sarvesham') shankaram' varadam' shivam .. 1..
अर्थ —कैलास पर्वत की चोटी पर विराजमान, देवों के देव, जगत के गुरु, सर्वज्ञ, वरदान देने वाले शिव से देवी ने प्रश्न किया।
॥ श्रीदेव्युवाच ॥
देवदेव परेशान भक्त्ताभीष्टप्रदायक ।
प्रब्रूहि मे महाभाग गोप्यं यद्यपि न प्रभो ॥ २॥
बटुकस्यैव हृदयं साधकानां हिताय च ।
.. shreedevyuvaacha ..
devadeva pareshaana bhaktaabheesht'apradaayaka .
prabroohi me mahaabhaaga gopyam' yadyapi na prabho .. 2..
bat'ukasyaiva hri'dayam' saadhakaanaam' hitaaya cha .
अर्थ —हे देवादिदेव! आप दुःखी भक्तों की इच्छा पूरी करने वाले हैं।हे प्रभो, मुझसे वह गोपनीय ज्ञान कह दीजिए, चाहे वह कितना भी रहस्यपूर्ण क्यों न हो। अर्थ —(देवी कहती हैं) — मैं बटुक भैरव का हृदय—रहस्य जानना चाहती हूँ, जो साधकों के कल्याण के लिए है।
॥ श्रीशिव उवाच ॥
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि हृदयं बटुकस्य च ॥ ३॥
गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं तच्छृणुष्व तु मध्यमे ।
हृदयास्यास्य देवेशि बृहदारण्यको ऋषिः ॥ ४॥
छन्दोऽनुष्टुप् समाख्यातो देवता बटुकः स्मृतः ।
प्रयोगाभीष्टसिद्धयर्थं विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ ५॥
.. shreeshiva uvaacha ..
shri'nu devi pravakshyaami hri'dayam' bat'ukasya cha .. 3..
guhyaadguhyataram' guhyam' tachchhri'nushva tu madhyame .
hri'dayaasyaasya deveshi bri'hadaaranyako ri'shih' .. 4..
chhando'nusht'up samaakhyaato devataa bat'ukah' smri'tah' .
prayogaabheesht'asiddhayartham' viniyogah' prakeertitah' .. 5..
हे देवि! सुनो, मैं अब बटुक भैरव का हृदय (मूल रहस्य) बताता हूँ। यह रहस्य भी रहस्यों में श्रेष्ठ है। मध्यमादेवी, इसे सुनो।इस हृदय-स्तोत्र के ऋषि बृहदारण्यक मुनि बताए गए हैं। इस स्तोत्र का छन्द अनुष्टुप है और देवता बटुक भैरव हैं।इसका उपयोग साधक की सभी अभिष्ट सिद्धियों के लिए है।
॥ सविधि हृदयस्तोत्रस्य विनियोगः ॥
ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवहृदयस्तोत्रस्य श्रीबृहदारण्यक ऋषिः ।अनुष्टुप् छन्दः । श्रीबटुकभैरवः देवता ।
अभीष्टसिद्ध्यर्थं पाठे विनियोगः ॥
.. savidhi hri'dayastotrasya viniyogah' ..
om asya shreebat'ukabhairavahri'dayastotrasya shreebri'hadaaranyaka ri'shih' .
anusht'up chhandah' . shreebat'ukabhairavah' devataa .
abheesht'asiddhyartham' paat'he viniyogah' ..
ऋष्यादिन्यासः ॥
श्री बृहदारण्यकऋषये नमः शिरसि ।
अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीबटुकभैरवदेवतायै नमः हृदये ।
अभीष्टसिद्ध्यर्थं पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥
.. atha ri'shyaadinyaasah' ..
shree bri'hadaaranyakari'shaye namah' shirasi .
anusht'upchhandase namah' mukhe .
shreebat'ukabhairavadevataayai namah' hri'daye .
abheesht'asiddhyartham' paat'he viniyogaaya namah' sarvaange ..
ॐ प्रणवेशः शिरः पातु ललाटे प्रमथाधिपः ।
कपोलौ कामवपुषो भ्रूभागे भैरवेश्वरः ॥ १॥
om pranaveshah' shirah' paatu lalaat'e pramathaadhipah' .
kapolau kaamavapusho bhroobhaage bhairaveshvarah' .. 1..
अर्थ मेरे सिर की रक्षा “प्रणव (ॐ) के अधिपति” बटुक करें।ललाट की रक्षा प्रेत-गणों के स्वामी करें।
कपोलों की रक्षा सौन्दर्ययुक्त बटुक करें। भौंहों की रक्षा भैरवेश्वर करें।
नेत्रयोर्वह्निनयनो नासिकायामघापहः ।
ऊर्ध्वोष्ठे दीर्घनयनो ह्यधरोष्ठे भयाशनः ॥ २॥
netrayorvahninayano naasikaayaamaghaapahah' .
oordhvosht'he deerghanayano hyadharosht'he bhayaashanah' .. 2..
अर्थ —मेरी आँखों की रक्षा अग्नि जैसी दृष्टि वाले करें।नासिका की रक्षा पाप नाशक करें।ऊपरी ओष्ठ की रक्षा दीर्घ नेत्र वाले भैरव करें।नीचे के ओष्ठ की रक्षा भय को खाने वाले (भयाशन) करें।
चिबुके भालनयनो गण्डयोश्चन्द्रशेखरः ।
मुखान्तरे महाकालो भीमाक्षो मुखमण्डले ॥ ३॥
chibuke bhaalanayano gand'ayoshchandrashekharah' .
mukhaantare mahaakaalo bheemaaksho mukhamand'ale .. 3..
अर्थ —चिबुक की रक्षा उज्ज्वल नेत्र वाले करें। गालों की रक्षा चन्द्रमा धारण करने वाले शिव करें। मुख के भीतर की रक्षा महाकाल करें।
संपूर्ण मुखमण्डल की रक्षा भीमनेत्र भैरव करें।
ग्रीवायां वीरभद्रोऽव्याद् घण्टिकायां महोदरः ।
नीलकण्ठो गण्डदेशे जिह्वायां फणिभूषणः ॥ ४॥
दशने वज्रदशनो तालुके ह्यमृतेश्वरः ।
दोर्दण्डे वज्रदण्डो मे स्कन्धयोः स्कन्दवल्लभः ॥ ५॥
greevaayaam' veerabhadro'vyaad ghant'ikaayaam' mahodarah' .
neelakant'ho gand'adeshe jihvaayaam' phanibhooshanah' .. 4..
dashane vajradashano taaluke hyamri'teshvarah' .
dordand'e vajradand'o me skandhayoh' skandavallabhah' .. 5..
अर्थ —ग्रीवा (गले) की रक्षा वीरभद्र करें। घंटी-प्रदेश की रक्षा महोदर (प्रचण्ड) करें।
गर्दन के कोटरों की रक्षा नीलकण्ठ शिव करें। जीभ की रक्षा फणिधारी भैरव करें। दाँतों की रक्षा वज्र-समान दाँत वाले करें।
तालु की रक्षा अमृतेश्वर करें।भुजाओं की रक्षा वज्र सरीखे भैरव करें।स्कन्धों की रक्षा स्कन्दप्रिय देव करें।
कूर्परे कञ्जनयनो फणौ फेत्कारिणीपतिः ।
अङ्गुलीषु महाभीमो नखेषु अघहाऽवतु ॥ ६॥
koorpare kanjanayano phanau phetkaarineepatih' .
anguleeshu mahaabheemo nakheshu aghahaavatu .. 6..
अर्थ —कोहनियों की रक्षा कमल नेत्र वाले करें।
बाहु-फणाओं पर फुफकारने वाले नागपति करें।
अँगुलियों की रक्षा महाभीम करें।नाखूनों की रक्षा पाप नाशक करें।
कक्षे व्याघ्रासनो पातु कट्यां मातङ्गचर्मणी ।
कुक्षौ कामेश्वरः पातु वस्तिदेशे स्मरान्तकः ॥ ७॥
kakshe vyaaghraasano paatu kat'yaam' maatangacharmanee .
kukshau kaameshvarah' paatu vastideshe smaraantakah' .. 7..
अर्थ —कक्ष-प्रदेश (बगल) की रक्षा व्याघ्रासनधारी करें।कटि की रक्षा गजराज की खाल ओढ़े भैरव करें।कुक्षि की रक्षा कामेश्वर करें। वस्ति (नाभि के नीचे) की रक्षा काम का नाश करने वाले करें।
शूलपाणिर्लिङ्गदेशे गुह्ये गुह्येश्वरोऽवतु ।
जङ्घायां वज्रदमनो जघने जृम्भकेश्वरः ॥ ८॥
shoolapaanirlingadeshe guhye guhyeshvaro'vatu .
janghaayaam' vajradamano jaghane jri'mbhakeshvarah' .. 8..
अर्थ —लिङ्ग-प्रदेश की रक्षा शूलधारी करें। गुप्त अंगों की रक्षा गुह्येश्वर करें। जंघा की रक्षा वज्र को भी जीतने वाले करें।
जघन की रक्षा जृम्भकेश्वर करें।
पादौ ज्ञानप्रदः पातु धनदश्चाङ्गुलीषु च ।
दिग्वासो रोमकूपेषु सन्धिदेशे सदाशिवः ॥ ९॥
paadau jnyaanapradah' paatu dhanadashchaanguleeshu cha .
digvaaso romakoopeshu sandhideshe sadaashivah' .. 9..
अर्थ —पाँवों की रक्षा ज्ञान देने वाले करें। पाद अँगुलियों की रक्षा धनदेवता करें।
सारे रोमकूपों की रक्षा दिगम्बर भैरव करें। सन्धि-प्रदेशों की रक्षा सदाशिव करें।
पूर्वाशां कामपीठस्थः उड्डीशस्थोऽग्निकोणके ।
याम्यां जालन्धरस्थो मे नैरृत्यां कोटिपीठगः ॥ १०॥
poorvaashaam' kaamapeet'hasthah' ud'd'eeshastho'gnikonake .
yaamyaam' jaalandharastho me nairri'tyaam' kot'ipeet'hagah' .. 10..
अर्थ —पूर्व दिशा में कामपीठस्थ भैरव रक्षा करें। अग्निकोण में उड्डीयनपीठ का भैरव करें।
याम्य दिशा में जालन्धरपीठस्थ करें। नैरृति में कोटिपीठस्थ भैरव करें।
वारुण्यां वज्रपीठस्थो वायव्यां कुलपीठगः ।
उदीच्यां वाणपीठस्थः ऐशान्यामिन्दुपीठगः ॥ ११॥
vaarunyaam' vajrapeet'hastho vaayavyaam' kulapeet'hagah' .
udeechyaam' baanapeet'hasthah' aishaanyaamindupeet'hagah' .. 11..
अर्थ —पश्चिम में वज्रपीठस्थ रक्षा करें। वायव्य में कुलपीठस्थ करें। उत्तर में वाणपीठस्थ करें। ईशान में इन्दुपीठस्थ करें।
ऊर्ध्वं बीजेन्द्रपीठस्थः खेटस्थो भूतलोऽवतु ।
रुरुः शयानेऽवतु मां चण्डो वादे सदाऽवतु ॥ १२॥
oordhvam' beejendrapeet'hasthah' khet'astho bhootalo'vatu .
ruruh' shayaane'vatu maam' chand'o vaade sadaavatu .. 12..
अर्थ —ऊर्ध्व (ऊपर) की रक्षा बीजेन्द्रपीठस्थ करें। मृत्यू-लोक में खेटस्थ भैरव रक्षा करें।
सोते समय रुरु भैरव रक्षा करें। वाद-विवाद में चण्ड भैरव रक्षा करें।
गमने तीव्रनयनः आसीने भूतवल्लभः ।
युद्धकाले महाभीमो भयकाले भवान्तकः ॥ १३॥
gamane teevranayanah' aaseene bhootavallabhah' .
yuddhakaale mahaabheemo bhayakaale bhavaantakah' .. 13..
अर्थ —चलते समय तीक्ष्ण नेत्र वाले रक्षा करें। बैठने पर भूतों के प्रिय (भूतवल्लभ) रक्षा करें।
युद्ध समय महाभीम रक्षा करें।भय के क्षण में भवान्तक (भव का अंत करने वाले) रक्षा करें।
रक्ष रक्ष परेशान भीमदंष्ट्र भयापह ।
महाकाल महाकाल रक्ष मां कालसङ्कटात् ॥ १४॥
raksha raksha pareshaana bheemadam'sht'ra bhayaapaha .
mahaakaala mahaakaala raksha maam' kaalasankat'aat .. 14..
अर्थ —हे परेशानभैरव! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।
हे भीमदंष्ट्र! भय दूर करें। हे महाकाल! मुझे काल संकट से बचाएँ।
॥ फलश्रुतिः ॥
इतीदं हृदयं दिव्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
सर्वसम्पत्प्रदं भद्रे सर्वसिद्धिफलप्रदम् ॥
.. phalashrutih' ..
iteedam' hri'dayam' divyam' sarvapaapapranaashanam .
sarvasampatpradam' bhadre sarvasiddhiphalapradam ..
अर्थ —हे भद्रे! यह दिव्य हृदय-स्तोत्र सभी पापों का नाश करता है, समस्त सम्पत्ति, सुख और सिद्धियाँ प्रदान करता है।
॥ इति श्रीबटुकभैरवहृदयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥